Navratri का महत्व जानिए

Navratri हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है| Navratri शब्द एक संस्कृत शब्द है| जिसका अर्थ होता है नौ रातें| इन नौ रातों और 10 दिनों के दौरान शक्ति या देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है| इसके बाद दसवें दिन पूरे देश में बड़ी ही धूम धाम से दशेहरा या विजय दशमी मनाया जाता है| आज  हम आपको Navratri के बारे में बताएंगे| आप में से बहुत से लोग ये पूछ रहे होंगे की When Is Navratri In 2021. इसका जवाब भी आपको हमारे ही article में मिलेगा| Navratri 7 October 2021 से शुरू हैं|

कितनी बार आती है Navratri?

दोस्तों, Navratri पर्व वर्ष में चार बार आता है| पौष, चैत्र, आषाढ़, आश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक Navratri मनाई जाती है| मुख्य रूप से दो बार ही आती है और दो बार गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है| नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरूपों की पूजा होती है| आइए अब जानते हैं कि किन नौ देवियों की पूजा होती है और इसके पीछे की वजह क्या है?

माता शैलपुत्री

Mata Shailputri

 Navratri के पहले दिन दुर्गा मां के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है| यदि उचित ढंग से की जाए तो मां शैलपुत्री की पूजा से कुंडलिनी के मूलाधार चक्र को जागृत किया जा सकता है| सबसे पहले हम आपको बताएंगे की शैलपुत्री की कथा क्या है?

शैलपुत्री देवी सती का रूप हैं| सती प्रजापति दक्ष की कन्या थी| उनका विवाह महादेव शिव के साथ हुआ| कहते हैं की दक्ष ने सती का शिव के साथ विवाह अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर किया था| परन्तु शिव की जीवन शैली के कारण दक्ष उन्हें पसंद नहीं करते थे| एक बार दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया| इस यज्ञ में दक्ष ने शिव जी को आमंत्रित नहीं किया|

जब सती को ज्ञात हुआ की उनके पिता ने एक ऐसे यज्ञ का आयोजन किया है जिसमें सभी देवी देवता आमंत्रित हैं तो उन्होंने भी शिव जी के सामने अपने पिता के यहां जाने की इच्छा व्यक्त की| इसपर शिव जी ने कहा की एक विवाहिता को उसके पिता के यहां बिना निमंत्रण के नहीं जाना चाहिए|

सती फिर भी जाने का हठ करती रहीं| सती की अपने घर जाकर सबसे मिलने की व्यग्रता देख शिव जी ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी| जब सती पिता के घर पहुंची तो मां के अतिरिक्त किसी ने भी उन्हें स्नेह और आदर नहीं दिया| यहां तक की शिव जी का भाग भी यज्ञ में नहीं निकाला गया|

जब सती ने अपने पिता दक्ष से इसका कारण पूछा तो दक्ष ने उत्तर दिया की शिव बाघम्बर धारण करते हैं| नर मुंड की माला पहनते हैं| वो देवताओं के साथ बैठने योग्य नहीं हैं| पति के लिए ऐसे अपमान जनक शब्द सुनकर देवी सती को बहुत दुःख हुआ और साथ ही उन्हें भयंकर क्रोध भी आया|

उन्हें समझ आ गया था की शिव जी की बात न मान कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है| सती ने उसी क्षण उस यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी| इस भयावय घटना को सुनकर शिव जी ने अपने गणों को वहां भेजा और यज्ञ को पूरी तरह नष्ट करवा दिया|

शिव जी क्रोध में आकर तांडव करने लगे| इसके साथ ही वो सती के शरीर को लेकर सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे| सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इस दृश्य को देख भयभीत हो गया| तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े कर दिए| ये टुकड़े जिन स्थानों पर गिरे वो टुकड़े ही आज शक्ति पीठ कहलाते हैं| माता सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में लिया| यही कारण है की उनका नाम शैलपुत्री पड़ा| उन्हें पार्वती और हेमवती भी कहा जाता है| ये तो थी मां शैलपुत्री की कथा| अब आइए जानते हैं की शैलपुत्री माता की पूजा विधि क्या है?

ये है पूजा का विधान

Navratri का शुभारंभ कलश स्थापना के साथ किया जाता है| यह कलश नौ दिन तक स्थापित रहता है| इसके लिए सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी को साफ़ कर के इसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं| इस चौकी पर मां दुर्गा का चित्र रखें| अब किसी मिटटी के पात्र अथवा गमले में मिटटी डालकर जौ के कुछ बीज बो दें| फिर इस पात्र में थोड़ा पानी डाल दें|

अब एक तांबे का कलश लेकर इस पर कलावा या मौली बांध दें और कलश पर तिलक लगाएं| इस कलश में गंगाजल भरकर कुछ चावल के दाने, सुपारी और दूर्वा घास डाल दें| कलश के किनारों पर पांच आम के पत्ते रखें और कलश को ढक दें|

अब एक नारियल को एक साफ़ लाल रंग के कपड़े में लपेटकर इसे भी कलावे से बांध दें| इस नारियल को कलश पर स्थापित करें| अब लकड़ी की चौकी पर मां के चित्र के बराबर जौ वाला पात्र रखें और उसपर कलश स्थापित कर दें| इस कलश को नौ दिन तक ऐसे ही रहने दें|

जिस मिटटी के पात्र या गमले में आपने जौ बोया है, उसे हर दिन थोड़ा थोड़ा पानी देते रहें| यदि संभव हो तो Navratri के नौ दिन मां के सामने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करें| इसके पश्चात एक छोटे से हवन कुंड में एक छोटे कंडे के टुकड़े को जला कर रखें| इसमें थोड़ा कपूर भी डाल दें|

दो लौंग लेकर घी में डुबोकर और सुपारी को कंडे में अर्पित करें| साथ ही रोली और चावल से तिलक करें| अब पूजा में फल और मिठाई का भोग लगाएं| कुछ लोग प्रथम दिन से दुर्गा सप्तशती के अध्यायों का पाठ करते हैं| यदि आप भी इस प्रथा का अनुसरण करते हैं तो इसे अवश्य करें|

प्रतिदिन मां दुर्गा के कवच का पाठ करना बिलकुल न भूलें| ऐसा करने से मां का आशीर्वाद सदैव आप पर बना रहेगा| इसके पश्चात व्रत का संकल्प लें| उसके बाद शैलपुत्री के मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करें| ध्यान रहे आपको वही माला लेनी है जिसमें मोतियों की संख्या 108 हो| अब जान लीजिए मां शैलपुत्री का मंत्र|

ये है माता शैलपुत्री का मंत्र

ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम: | इस मंत्र का 108 बार जप करें|

मां शैलपुत्री की पूजा से क्या होता है?

दोस्तों, मां शैलपुत्री आयु, सौभाग्य और प्रकृति की देवी हैं| इसलिए मां से प्रार्थना करें की आपके घर में सौभाग्य बना रहे| साथ ही सभी को लम्बी आयु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति हो| अब आप आरती करके क्षमा याचना करते हुए पूजा समाप्त करें| याद रहे, आपको शाम के वक्त भी आरती करनी है| इसी के साथ समाप्त होती है माँ शैलपुत्री की पूजा विधि|

ब्रह्मचारिणी माता

Brahmacharini Mata

दोस्तों, ब्रह्मचारिणी माता की पूजा Navratri के दूसरे दिन की जाती है| ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली| माता ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में पूरे जीवन तपस्या की| उनकी घोर तपस्या के कारण ही वो ब्रह्मचारिणी के नाम से जानी गई| इसलिए ब्रह्मचारिणी को तपस्या ज्ञान और वैराग्य की देवी माना जाता है| अपने पूर्व जन्म में देवी ब्रह्मचारिणी ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया| उन्होंने महादेव शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की| ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष केवल फूल और फल का आहार ग्रहण करके व्यतीत किए| सौ वर्षों तक केवल साग खाकर जीवन व्यतीत किया| तीन हजार वर्षों तक केवल टूटे हुए बेलपत्र का आहार करके शिव जी के ध्यान में लीन रहीं|

इसके बाद उन्होंने बेलपत्र खाना भी त्याग दिया| वो निर्जल होकर महादेव की तपस्या करती रहीं| पत्रों का त्याग करने के कारण ही उनका नाम अपर्णा भी पड़ा| जीवन के बहुत से दिन देवी ब्रह्मचारिणी ने खुले आकाश के नीचे व्यतीत किए| इतनी गहन तपस्या से उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था|

सभी देवता, मुनिगण, ऋषि आदि देवी की तपस्या से अविभूत थे| सभी ने देवी के समर्पण की सराहना की और प्रार्थना करते हुए कहा की हे देवी, आजतक किसी ने इस संसार में इतनी कठोर तपस्या नहीं की है| ऐसा करने का साहस केवल आप में ही है|

आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी| अगले जन्म में चंद्रमौली शिव आपको पति के रूप में प्राप्त होंगे| आप कृपा करके तपस्या छोड़कर अपने घर लौट जाइए| ब्रह्मा जी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें शिव जी की पत्नी बनने का वरदान दिया|

इस प्रकार देवी ने अगले जन्म में शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त किया| देवी ब्रह्मचारिणी की कथा का सार यह है की जीवन में कठिन समय आने पर भी हमें अपने पथ से विचलित नहीं होना चाहिए|

ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना से मिलता है मोक्ष

शास्त्रों में कहा गया है कि जो मनुष्य ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है| अध्यात्म और आंतरिक आनंद के लिए मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद आवश्यक है| मां ब्रह्मचारिणी के भक्तों को प्रसन्नता और आरोग्य की प्राप्ति होती है| ब्रह्मचारिणी माता अपने भक्तों को हर प्रकार के भय से मुक्त करती हैं|

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

दोस्तों, आपको प्रयास करना है की नवरात्रि की पूजा में लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें| सबसे पहले दिन आपने जिस कलश को स्थापित किया था, उसी का तिलक करके, दीपक जलाकर कलश का पूजन करें| साथ ही मां दुर्गा के चित्र का भी कुमकुम और चावल से तिलक करें| 

अगर आप ने माता के सामने अखंड ज्योत प्रज्वलित की है तो इसमें आप उचित मात्रा में तेल या घी डालते रहें| इसे बिलकुल भी बुझने नहीं देना है| 

संभव हो सके तो इस दिन देवी ब्रह्मचारिणी को कमल का पुष्प अर्पित करें| इसके पश्चात फल, मिठाई, सुपारी, पान आदि चढ़ाएं| अब एक टुकड़ा कंडे का जलाकर इसमें कपूर डालें, घी में डूबा हुआ दो कली लौंग डालें| इस अग्यारी का रोली और चावल से तिलक करें| अब ब्रह्मचारिणी स्त्रोत मंत्र का 11 बार उच्चारण करें जो इस प्रकार है|

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू|

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिन्युत्तमा||

इसके बाद आपको दुर्गा सप्तशती का पाठ करके कवच का पाठ करना है| साथ ही इस पुस्तक में उल्लेखनीय बीज मंत्रों का भी आपको उच्चारण करना है| इसके पश्चात आपको एक मंत्र का जाप करना है जो इस प्रकार है|

देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता|

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः||

माता चंद्रघंटा

Maa Chandraghanta

Navratri के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है| मां दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा अलौकिक वस्तुओं के दर्शन करवाता है| यह स्वरूप बहुत आकर्षक, कल्याणकारी और शांति प्रदान करने वाला है| इस स्वरूप में देवी के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है| इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है| 

इनका शरीर स्वर्ण के समान चमक धारण करता है| मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं| जिनमें अनेक अस्त्र शस्त्र सुशोभित हैं| देवी चंद्रघंटा का वाहन सिंह है| देवी के मस्तिष्क पर सुसज्जित घंटे की भयंकर ध्वनि राक्षसों और असुरों को भयभीत करती है| मान्यता है की यदि मां चंद्रघंटा की पूर्ण विधि विधान से पूजा अर्चना की जाए तो यश और सम्मान की प्राप्ति होती है|

देवी चंद्रघंटा कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली और हृदय रोग निवारक हैं| यह भी कहा जाता है की माता चंद्रघंटा की आराधना से भक्तों को पिछले जन्मों के भी पापों से मुक्ति मिलती है| चंद्रघंटा मां की आराधना मणिपुर चक्र जो की कुंडलिनी का एक अंग है में ध्यान लगाकर की जाती है|

माता चंद्रघंटा की पूजा विधि

दोस्तों अगर आप माता चंद्रघंटा को प्रसन्न करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले मां चंद्रघंटा को कुमकुम का तिलक लगाकर उनके चरण स्पर्श करने चाहिए|

अब माता को लौंग, मिठाई, फूल और फल अर्पित करें| आपको इस बात का ख़ास ख़याल रखना है की आप जो मिठाइ देवी मां को अर्पित करें वो घर पर बनी हुई हो|  इसके बाद आपको दुर्गा सप्तशती के अध्याय का पाठ करें| फिर देवी का कवच पढ़कर चंद्रघंटा बीज मंत्र का उच्चारण करें| जो इस प्रकार है|

एम् श्रीं शक्त्यै नमः|

ॐ एम् ह्रीं क्लीं चंद्रघंटायै नमः|

आपको इन मंत्रों की एक माला का जप करना है| अब आप चाहें तो दुर्गा आरती करें या अगर आपकी किताब में मां चंद्रघंटा की आरती है तो उसे प्रेम पूर्वक गाकर मां की आरती उतारें| इसके बाद आप मां से प्रार्थना करें की आपके सभी पाप नष्ट हों|

माँ कूष्मांडा

Kushmaanda

Navratri का चौथा दिन माता कूष्मांडा को समर्पित है| ये शक्ति का चौथा स्वरूप हैं| इन्हें सूर्य के समान तेजस्वी माना गया है| शायद आप में से बहुत से लोग ये नहीं जानते होंगे की अपनी मंद मुस्कान से अंड यानी ब्रह्माण्ड उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कूष्माण्डा नाम दिया गया है|

एक पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि इन्हीं देवी ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की थी| ये संसार की आदि स्वरूपा शक्ति हैं| सूर्य के भीतरी लोक में इनका निवास स्थान है| यहां निवास करने का साहस केवल देवी कूष्मांडा में ही है|

इसलिए कूष्मांडा माता के शरीर की कांति सूर्य के समान चमकने वाली है| ऐसा भी कहा जाता है की ब्रह्माण्ड में उपस्थित सभी प्राणियों में जो तेज विद्यमान है वो इनकी केवल छाया मात्र है| देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं| इनमें हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र मौजूद हैं| जो साधक मां कूष्मांडा की आराधना करना चाहता है उसे अनाहत चक्र में ध्यान केंद्रित करना होता है| इनकी उपासना से सभी प्रकार के रोग और कष्ट मिट जाते हैं| भक्तों की यश, बल और आयु में भी वृद्धि होती है|

माँ कूष्मांडा को इस विधि से करें प्रसन्न

प्रतिदिन की भांति कलश की पूजा कर मां कूष्मांडा को प्रणाम करें| साथ ही आपको धुप एवं दीप भी प्रज्वलित करना है| अगर संभव हो तो इनकी पूजा के लिए अनेक रंगों वाला आसान प्रयोग करें| इसके पश्चात कूष्मांडा माता को जल, फल, पुष्प और मिष्ठान अर्पित करें|

फिर प्रतिदिन की तरह ही अग्यारी प्रज्वलित करके लौंग और सुपारी अर्पित करें| अगर आपके घर के किसी भी सदस्य को किसी भी प्रकार का रोग है तो उसके लिए इस पूजा को विधि विधान से करना और भी जरूरी हो जाता है| अब कूष्मांडा माता के बीज मंत्र का उच्चारण करें जो इस प्रकार है|

ॐ ह्रीं देव्यै नमः|

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नमः|

इसके पश्चात आरती करते हुए मां से प्रार्थना करें की आपको निरोगी काया और शुद्ध मन प्राप्त हो तथा आप उनकी उपासना में लीन रहें| फिर क्षमा याचना के साथ पूजा का समापन करें|

माँ स्कंदमाता

Maa Skandmata

नवरात्रि का पांचवां दिन मां दुर्गा के पांचवे रूप स्कंदमाता का है| दुर्गा मां का यह रूप कार्तिकेय की मां हैं| कार्तिकेय देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे| कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है| इसलिए दुर्गा मां का यह रूप स्कंदमाता कहलाता है|

कार्तिकेय को कुमार, मुरुगन, सुब्रमण्य आदि नामों से भी जाना जाता है| अनेक स्थानों पर स्कंदमाता और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा साथ में की जाती है| ऐसा कहा जाता है की स्कंदमाता की पूजा से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं| इसलिए मन को पवित्र रखकर एकाग्र भाव से स्कंदमाता की आराधना करके उनकी शरण में जाने का प्रयत्न करना चाहिए| स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं|

स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान होती हैं| इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है| कमल के साथ देवी का यह स्वरूप सिंह पर भी विराजमान है| इसलिए स्कंदमाता का वाहन सिंह भी है| कहा जाता है की स्कंदमाता की उपासना से कार्तिकेय देव की उपासना भी हो जाती है|

इन देवी की उपासना अलौकिक तेज और कांती प्रदान करने वाली है| कहते हैं, जो कोई भी इनकी सच्चे दिल से पूजा अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है| साथ ही साधक को अत्यंत सुख की प्राप्ति भी हो जाती है|

इनकी उपासना से एक मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है| संतान की उत्पत्ति के लिए भी स्कंदमाता की पूजा की जाती है| वात, पित्त, कफ आदि से पीड़ित व्यक्ति को भी देवी के इस स्वरूप की पूजा करनी चाहिए| ऐसा करने से ये रोग पूर्णतः नष्ट हो जाते हैं| स्कंदमाता की आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान केंद्रित करके की जाती है|

ऐसे करें माँ स्कंदमाता को प्रसन्न

 जिस प्रकार आप नवरात्रि में कलश पूजन, लौंग अर्पण आदि करते हैं, उसी प्रकार नवरात्रि के पांचवे दिन भी आपको करना है| साथ में इस मंत्र का जाप करें|

सिंघासनगता नित्यम पद्माश्रितकरद्वया |

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्द माता यशश्विनी ||

अब स्कंदमाता को जल, पुष्प आदि अर्पित करें| इनकी पूजा के दौरान अलसी को जरूर शामिल करें| देवी के इस रूप को केला भी बहुत प्रिय है| इसलिए माता को केले का भोग लगाएं| अब बीज मंत्र का उच्चारण करें जो इस प्रकार है|

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः|

इसके बाद आप दुर्गा सप्तशती के अध्यायों और कवच का पाठ करें| फिर यदि संभव हो सके तो पुस्तक में छपे सभी बीज मंत्रों का उच्चारण करें| अब स्कंदमाता के मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नमः का एक माला जप करें| उसके बाद अंत में स्कन्दमाता या दुर्गा आरती करके क्षमा याचना करें| इस प्रकार पांचवें दिन की पूजा भी सम्पन्न हुई|

माँ कात्यायनी

Maa Katyayni

Navratri के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है| आइए जानते हैं इन माता के बारे में की कात्यायनी माता कौन हैं और क्यों इनकी पूजा की जाती है| कत नामक एक प्रसिद्ध ऋषि थे| उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम कात्य रखा गया| कात्य के गोत्र में ही विश्व प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन ने जन्म लिया| कात्यायन ने कई वर्षों तक देवी पराम्बा की कठोर तपस्या की|

उन्होंने प्रार्थना की कि मां पराम्बा उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें| ऋषी कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया| इसलिए उनका नाम कात्यायिनी पड़ा| ऐसा भी कहा जाता है की जब पृथ्वी पर दानव महिषासुर का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब महिषासुर का वध करने के लिए त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज को सम्मिलित कर एक देवी को उत्पन्न किया|

इन देवी की आराधना सर्व प्रथम ऋषि कात्यायन ने की थी| इसलिए इन देवी का नाम कात्यायनी पड़ा| देवी ने अश्विन कृष्ण चतुर्दशी के दिन उत्पन्न होकर सप्तमी अष्टमी और नवमी के दिनों में ऋषी की आराधना स्वीकार की| उनहोंने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया|

मां कात्यायनी की उपासना परेशानियों को नष्ट करने वाली है| इनकी आराधना से विवाह सम्बन्धी दोष और कष्ट नष्ट हो जाते हैं| कात्यायनी की पूजा करने से देव गुरु बृहस्पति प्रसन्न होते हैं और अच्छा वर प्राप्त होने का वरदान देते हैं|

अगर आपके वैवाहिक जीवन में कष्ट हो तो भी मां कात्यायनी की पूजा फल प्रदान करने वाली है| यदि विवाह में बाधा हो तो भी मां कात्यायनी की ही पूजा की जाती है| कहा जाता है की जब ब्रज की सभी गोपियां भगवान कृष्ण को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं तब गोपियों ने मां कात्यायनी की ही पूजा की थी|

कंठ रोगियों को विशेष रूप से इन देवी की पूजा करनी चाहिए| मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत आकर्षक और आभूषणों से सुसज्जित है| उनकी चार भुजाएं हैं| मां कात्यायनी का वाहन भी सिंह है|

माँ कात्यायनी की पूजा विधि

साधक को आज्ञा चक्र में ध्यान लगाकर मां कात्यायनी की उपासना करनी चाहिए| प्रतिदिन की भांति नवरात्रि में विधि विधान से पूजा करें| मां कात्यायनी को शहद अति प्रिय है| इसलिए पूजा में शहद का भोग लगाना ना भूलें| अब आप देवी के विग्रह को लाल रंग की चुनरी पहनाएं|

लाल रंग के पुष्प अर्पित करें और संभव हो तो लाल रंग के वस्त्र पहन कर ही मां कात्यायनी की पूजा करें| क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: मंत्र के उच्चारण के साथ देवी का पूजन करें| इसके पश्चात ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम: मंत्र का माला पर जप करें| इसके बाद आरती और क्षमा याचना के साथ पूजा का समापन करें|

माँ कालरात्रि

Maa Kaalratri

Navratri के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा करने का विधान है| मां कालरात्रि अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करने वाली हैं| इस कारण इन्हें शुभंकारी भी कहा जाता है| अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली और काल से भी रक्षा करने वाली माता हैं कालरात्रि| मां कालरात्रि दानवीय शक्तियों का विनाश करने वाली हैं| आसुरी शक्तियां इनके नाम मात्र से ही भयभीत हो जाती हैं|

मां कालरात्रि की आराधना से भक्त हर प्रकार के भय से मुक्त हो जाते हैं| मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानी गधा है| देवी भागवत पुराण और दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था| उनके इस आतंक के कारण देवता भी परेशान थे|

तब सभी देवता गण शिवजी के पास गए और उन्हें अपने कष्टों के बारे में बताया| तब शिवजी ने देवी पार्वती से उन सब देवताओं की रक्षा करने के लिए कहा| तब माता पार्वती ने देवी दुर्गा का रूप धारण किया और असुर शुम्भ निशुम्भ का वध किया|

इसके पश्चात देवी दुर्गा जब असुर रक्तबीज को मारने के लिए गई तो भगवान ब्रह्मा के वरदान के कारण जैसे ही मां रक्तबीज को मारती उसी रक्त से एक और रक्तबीज नामक असुर जन्म ले लेता| तब मां दुर्गा ने अपने तेज से माता कालरात्रि को उत्पन्न किया और उनसे कहा की आप अपना मुख बड़ा करें और रक्त बिंदुओं से उत्पन्न होने वाले असुरों का अपने मुख में भक्षण करें|

फिर माता दुर्गा ने रक्तबीज का संघार किया और उसके रक्त की बूंदों को गिरने से पहले ही माता कालरात्रि ने पीना आरम्भ कर दिया| इस प्रकार तीनों लोकों को रक्तबीज से मुक्ति मिल गई|

ऐसे करें माँ कालरात्रि को प्रसन्न

कालरात्रि का ललाट चक्र में ध्यान किया जाता है| सर्वप्रथम कलश पूजन के साथ अग्यारी में लौंग का जोड़ा आदि अर्पित करें| प्रतिदिन की भांति ही विधि विधान से रोली, अक्षत आदि से देवी का तिलक करें| अब देवी के बीज मन्त्र क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः का 9 से 11 बार उच्चारण करें|

इसके बाद आपको कालरात्रि माता का मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः का एक माला जाप करें| अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और सभी बीज मंत्रों का भी उच्चारण करें| अंत में आरती एवं क्षमा याचना के साथ पूजा का समापन करें|

माँ महागौरी

Maa Mahagori

Navratri के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है| ये दिन बहुत शुभ होता है| इस दिन मां महागौरी की उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं| नवरात्रि की अष्टमी को लोग अनेक कार्यों का शुभारम्भ करते हैं| मां महागौरी की आराधना मनोवांछित फल प्रदान करने वाली है| मां महागौरी आदि शक्ति हैं| इनके तेज से ही सम्पूर्ण जगत प्रकाशमान होता है|

दुर्गा सप्तशती में इस बात का जिक्र मिलता है की शुम्भ निशुम्भ राक्षसों से पराजित होने के बाद देवताओं ने गंगा तट पर जिसकी आराधना की थी वो मां महागौरी ही थीं| मां महागौरी के विषय में दो कथाएं प्रचलित हैं| पहली कथा के अनुसार महादेव शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की जिससे उनका शरीर काला पड़ गया था| 

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार कर उनका शरीर गंगाजल से धोया| तब से देवी का शरीर अत्यंत कांतिमान हो गया| तभी से इन्हें महागौरी कहा जाने लगा| 

दूसरी कथा के अनुसार एक बार शिव जी ने पार्वती जी के रूप के लिए कुछ कटु शब्द कह दिए| जिससे पार्वती जी आहात हुईं और कठोर तपस्या में लीन हो गईं| जब अनेक वर्षों तक पार्वती जी वापिस नहीं आईं तब शिव जी उनकी खोज में निकल पड़े| अंत में उन्होंने पार्वती माता को ढूंढ लिया|

जैसे ही शिवजी ने माता पार्वती को देखा तो वो आश्चर्य चकित हो गए| उनके मुख पर अत्यंत तेज को देखकर उन्होंने माता पार्वती को गौर वर्ण का वरदान दे दिया| तब से ही पार्वती जी को महा गौरी के नाम से भी जाना जाने लगा| महागौरी का वर्ण गौर है और उनके आभूषण भी श्वेत रंग के हैं| मां महागौरी की सवारी वृषभ अर्थात बैल है| विवाहित स्त्रियां इस दिन मां महागौरी को लाल रंग की चुनरी, सिंदूर और सुहाग का अन्य सामान भी चढाती हैं| मां महागौरी का ध्यान मस्तिष्क में किया जाता है|

माँ महागौरी की पूजा विधि

नवरात्रि में प्रतिदिन की भांति मां महागौरी की पूजा पूरे विधि विधान से करें| इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए : –

या देवी सर्वभूतेषु, मां गौरी रूपेण संस्थिता|

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः||

यदि संभव हो तो इस मंत्र का माला पर जप करें| इसके पश्चात आप बीज मंत्र श्रीं क्लीं ह्रीं वरदायै नमः का उच्चारण करें| अब महागौरी मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्यै नमः का एक माला जप करें| फिर क्षमा याचना के साथ आरती करें और पूजा सम्पन्न करें| संध्या आरती करना भी न भूलें|

माँ सिद्धिदात्री

Maa Siddhidatri

नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है| देवी का यह रूप भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाला है| मारकंडे पुराण में आठ सिद्धियों का उल्लेख मिलता है| जिनके नाम हैं अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व|

इसके अलावा ब्रह्म वैवर्त पुराण में दस सिद्धियों का उल्लेख मिलता है जिनमें शामिल हैं सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धी, कल्पवृक्षत्व, सृष्टी, संघारकरणसामार्थ्य, अमरत्व और सर्वन्यायकत्व| इस प्रकार कुल मिलाकर पुराणों में 18 सिद्धियों का उल्लेख मिलता है| मां सिद्धिदात्री इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं|

माता ये सभी सिद्धियां अपने भक्तों को प्रदान करती हैं| देवी पुराण के अनुसार मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही शिव जी को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी| इनकी कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ| इसी कारण शिवजी अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए|

दैत्यों से देवताओं और पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की रक्षा के लिए ही मां दुर्गा मां सिद्धिदात्री के रूप में नवमी के दिन प्रकट हुई थीं| मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं| दुर्गा जी का यह रूप कमल पर विराजित है और इनकी सवारी सिंह है|

एक कथा के अनुसार देवी ने स्वयं ही कहा है की मेरे अतिरिक्त दूसरी कोई नहीं है| ये सब मेरी ही विभूतियां हैं| ऐसा कहते ही सभी देवियां मां सिद्धिदात्री के शरीर में प्रविष्ट हो गईं| तब देवी और शुम्भ राक्षस के मध्य भी भयंकर युद्ध छिड़ गया| देवी ने शुम्भ को मार गिराया|

माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि

मां सिद्धिदात्री का ध्यान मध्य कपाल में किया जाता है| भक्तों को मां सिद्धिदात्री की पूजा पूरे विधि विधान से अपने परिवार के कल्याण के लिए करनी चाहिए| इनके वरदान से बुद्धि, सिद्धि, बल और सुख की प्राप्ति होती है| 

प्रतिदिन की भांति आपको कलश पूजन के साथ मां सिद्धिदात्री का पूजन इस दिन करना चाहिए| पूजा में सुगन्धित पुष्प, खीर या हलवा और श्रीफल होना आवश्यक है| देवी का पूजन करते समय बीज मंत्र ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः का नौ से ग्यारह बार उच्चारण करें|

अब एक हवन कुंड तैयार करें जिसमें आम की लकड़ियां, हवन सामग्रियां और कपूर का प्रयोग करके अग्नि प्रज्ज्वलित करें| अब हवन में 108 बार हवन सामग्री और घी की आहुती दें| हवन करते समय माला पर देवी मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नमः का 108 बार जप करें|

हर मंत्र के बाद स्वाहा के साथ कुंड में आहुती दें| अंतिम मंत्र पर हवन कुंड में नारियल और घी की आहुति डालें| दुर्गा सप्तशती के अध्यायों का पाठ और पुस्तक में लिखे बीज मंत्रों का उच्चारण जरूर करना चाहिए| यदि संभव हो तो मां दुर्गा का भजन कीर्तन भी करें|

अब क्षमा याचना और आरती के साथ पूजा का समापन करें| इस दिन अच्छा भोजन बनाकर मां को भोग लगाएं| सर्वप्रथम नौ कन्याओं और एक बालक को भोजन कराएं| उसके बाद उनका तिलक करके उन्हें दक्षिणा दें| इस प्रकार आपका नवरात्रि पूजन सम्पन्न हुई|

जो जौ के बीज प्रथम दिन बोए थे वो चौकी से हटाकर घर में कहीं और रख दें| चौकी को पूरी तरह से हटा दें| संभव हो तो हर शाम मां की आरती करें|

निष्कर्ष (Conclusion)

आज हमने आपको बताया की मां दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से हैं| हमने इस बात की भी जानकारी दे दी है की किस दिन किस मां की पूजा की जाती है| आपके सवाल Why Is Navratri Celebrated का भी हमने अपने इस article में जवाब दे दिया है| अब आपको किसी और से पूछने की जरूरत नहीं पड़ेगी की Why Is Navratri Celebrated या When Is Navratri In 2021 लिखकर भी आपको search engine पर search करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी| हमारे साथ अंत तक बने रहने के लिए आपका धन्यवाद और नवरात्रि की ढेर सारी शुभकामनाएं|

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